ब्लैक पाॅटरी, निजामाबाद
निजामाबाद-आजमगढ़ ब्लैक पाॅटरी के नाम से जाना जाता है। पौराणिकता के अनुसार, सामंती शासकों ने फारसी शैली से प्रभावित होकर बरतन, फलदान बनाने के लिये कारीगरों को इस शहर में रहने के लिये बुलाया था। आगे चलकर प्रतिभाशाली कारीगरों ने राख और धुएॅं के माध्यम से काला रंग जोड़ने की तकनीकी खोज ली, जिससे इस शिल्प की प्रसिद्धि हुई। मिट्टी के सांचों और बर्तनों को सब्जी के चूर्ण से धोया जाता है और सरसों के तेल से मला जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार, प्रजापति समुदाय शुरू से ही इन मिट्टी के बरतनों को बनाते आ रहा है। बरतनों को काबीज या आम की छाल, बास के पत्तों और आरूश या आधातोड़ा के पत्तों वली मिट्टी की पर्ची से धोया जाता है और फिर तपाने से पहले सरसों के तेल से रगड़ा जाता है, जिसके पश्चात् यह बर्तनों को चमकदार और चिकनी फिनिशिंग देता है और सतह को खरोंच से भी बचाता है।
आगन्तुक पर्यटकों में बढ़ोत्तरी, अधिकाधिक पर्यटन विकास, स्थानीय लोगों के रोजगार सृजन एवं पूंजी निवेश में बढ़ोत्तरी के दृष्टिकोण ब्लैक पाॅटरी, निजामाबाद स्थल को ग्रामीण पर्यटन योजना के तहत विकसित किया जा सकता है। शिल्प मेले में भी ब्लैक पाॅटरी की प्रदर्शिनी भी एक अच्छी पहल होगी। पर्यटन विकास के कार्यों को कराया गया है, जिससे लोग लाभांवित हो रहे है।