चरण पादुका गुरूदारा
निजामाबाद में स्थापित चरण पादुका गुरूदारा अपने संस्कृति और विरासत के लिये जाना जाता है। कई सिख अनुयायियों और साथ ही सिख समुदाय के लोंगो द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है। इस स्थल का भ्रमण श्री गुरू नानक साहब जी ने अयोध्या से बनारस तक अपनी प्रथम उदासी के दौरान और श्री गुरू तेग बहादुर जी ने 1670 में पटना से पंजाब की ओर भ्रमण के दौरान किया था। अपनी यात्रा के छाप के रूप में गुरू नानक और गुरू तेग बहादुर दोनों ने अपनी चरण पादुका यहाॅं छोड़ी थी। जिस स्थान पर गुरू तेग बहादुर जी ने ईश्वर से प्रार्थना की थी, उसे अकाल बंगा कहा जाता है। पौराणिकता के अनुसार, यहां पर एक कुआ भी है, जिसके जल से स्नान करने और गुरू के नाम का सिमरन करने पर व्यक्ति का दुख दूर हो जाता है। तमसा नदी के दूसरे तट पर एक सूखी भूमि थी, जो गुरू के चरणों के स्पर्श से सदाबहार हो गयी थी, जिसके बाद वह आनन्दबाग के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां पर चरण पादुका के अलावा श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी की पच्चीस पुरानी हस्तलिखित प्रतियाॅं और दशम ग्रंथ साहिब जी की छह पुरानी हस्तलिखित प्रतियाॅं है, साथ ही तलवार, ढाल, भाले, बंदूक जैसे कई पुरातन हथियार यहां पर संरक्षित हैं।